मैने २०२३ की शुरुआत 3 Sided Coin की टीम के साथ टाइपोग्राफ़ी वर्कशॉप से की थी तो यह लाज़िम है कि साल का अंत भी उन्ही के साथ मनाऊँ। उस वर्कशॉप के नतीजन 3 Sided Coin ने सितम्बर में अपने ब्लॉग पर हिन्दी भाषा में पहली पोस्ट प्रकाशित की और अपने पाठकों को दिखलाया कि वे देवनागरी लिपि की टाइपोग्राफ़ी में भी माहिर हैं। इस बात में कोई दो राए नहीं हैं कि आज-कल डिज़ाइन और टाइपोग्राफ़ी के विषयों पर हिन्दी में बहुत कम लिखा जाता है और वीवर्क के नए इलस्ट्रेशन्स के बारे में लिखी भव्या की पोस्ट इस समस्या को सुलझाने की ओर एक सार्थक कदम है। मेरी यह हिन्दी पोस्ट भी उसी पहल में एक छोटा सा योगदान है।
दिलचस्प देवनागरी अक्षर: टाइपोग्राफ़ी के नए अंदाज़ के लिए नए टाइपफ़ेस
आज के इस निबंध में मैं हाल ही मे प्रकाशित हुए ऐसे तीन टाइपफ़ेसिस के बारे में बात करना चाहती हूँ जिन्होने देवनागरी अक्षरों को नए और दिलचस्प रूप देने में खास उपलब्धि प्राप्त की है। तीनों ही टाइपफ़ेस डिस्प्ले की श्रेणी में आते हैं, यानि कि इनका प्रयोग शीर्षकों व छोटे अनुच्छेदों में किया जाना चाहिए। समुचित टेक्स्ट टाइपफ़ेस के साथ इस्तेमाल करने पर, यह किसी भी लेख, पुस्तक या वेबसाइट को एक अनूठा व्यक्तित्व देने में सफ़ल होंगे। इसके अलावा एक और महत्त्वपूर्ण कड़ी है जो इन्हे साथ बांधती है — इन सभी टाइपफ़ेसिस की रचना और प्रकाशन या तो अकेले देवनागरी में हुई है या लैटिन लिपि के साथ। कहने का मतलब यह है कि ये पहले से मौजूद किसी लैटिन टाइपफ़ेस से नहीं जन्मे हैं।
इकत देवनागरी (लिपी रावल, फ़्यूचर फ़ॉण्ट्स)
लिपी रावल का इकत देवनागरी हाल में प्रकाशित देवनागरी टाइपफ़ेसिस में मेरा सबसे पसंदीदा है। एक झलक में यह टाइपफ़ेस सरल पिक्सल डिज़ाइन होने का प्रभाव देता है पर असलियत में यह देवनागरी लिपि के बारें में सोची गई कई मान्यताओं को चकनाचूर कर डालता है। देवनागरी और अन्य भारतीय लिपियों को अक्सर पेचीदा बुलाया गया है लेकिन इस डिज़ाइन में जटिल से जटिल अक्षर को भी केवल चार पिक्सल ऊँची ग्रिड में समा दिया गया है। इकत हमें यह सवाल उठाने पर मजबूर करता है कि देवनागरी जैसी लिपि को कठिन कौन करारता है और यह दावा किस संदर्भ में किया जाता है।
इकत देवनागरी की कहानी कोविड-१९ पैण्डेमिक के समय शुरू हुई । हम सभी की तरह लिपी घर में बंद थीं। साथ ही साथ उनका प्रमुख हाथ उन्हे कठिनाइयाँ दे रहा था। ऐसे में उन्होने अपने विचारों को रूप देने के लिए पिक्सल फ़ॉण्ट एडिटर, फ़ॉण्ट्स्ट्रक्ट, को चुना। एक तरफ़ उनके मन में गुजरात के पाटण ज़िले में बुने हुए पटोला की तस्वीर थी तो दूसरी ओर वह तोशी ओमागारी की किताब आर्केड गेम टाइपोग्राफ़ी में विडिओ गेम्ज़ में इस्तेमाल होने वाले छोटे-से-छोटे लैटिन पिक्सल फ़ॉण्ट्स को निहार रही थीं। इन दोनो के प्रभाव में उन्होने अपने आपको चुनौती दी वह सबसे कम पिक्सल ऊँचा देवनागरी टाइपफ़ेस बनाएँगीं। इस तरह लिपी ने देवनागरी अक्षरों का सार ढूँढ, उन्हे न्यूनतम पिक्सलों में रच डाला।
प्रेरणादायी इकत फैब्रिक डिज़ाइन
लिपी ने कहा न जाने क्यूँ टाइप डिज़ाइनरों के मन में यह ख़ौफ़ है कि देवनागरी के पाठक केवल उन्ही टाइपफ़ेसिस को अपनाएँगे जिनके रंग-ढ़ंग से वे पहले से परिचित हैं। ऐसी सोच ख़ास करके अजीब है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से उन्ही पाठकों ने खराब छपाई के कारण टूटे-फूटे अक्षरों को पढ़ा है। और रोज़मर्रा में वे साइन-पेण्टरों द्वारा बनाए हुए अनगिनत अनूठे अक्षर भी देखते हैं। इकत देवनागरी को मुक्कमल करने से लिपी को इस संदेहग्रस्त सोच से छुटकारा मिला। लिपी पूछती हैं − अगर इकत के अक्षरों को पढ़ा जा सकते हैं तो अन्य साहसी टाइपोग्राफ़िक प्रयोग करने से हमें कौन रोक रहा है?
विलोम देवनागरी (सारंग कुलकर्णी, एकटाइप)
हमारी सूची में दूसरा टाइपफ़ेस है विलोम देवनागरी। विलोम देवनागरी की अक्षर संरचना पारम्परिक देवनागरी सुलेखन के नियमों को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर देती है। एक ही अक्षर में कुछ रेखाएँ रेशम के तागे सी नाज़ुक हैं, जबकि सभी सीधी, खड़ी रेखाएँ − जैसे काना या मध्यदंड व अल्पदंड − और बिंदुएँ − जैसे अनुस्वार व नुक़्ता − ठोस और भारी हैं। सोचके लगता है कि यह मेल देखने में अटपटा लगेगा, परंतु विलोम देवनागरी में न सिर्फ़ यह विपरीत धारणाएँ घुल-मिल जाती हैं पर साथ में सजीली भी लगती हैं। डिज़ाइन इतनी उमदा है कि शिरोरेखा की कमी भी महसूस नहीं होती।
जब मैने विलोम देवनागरी के डिज़ाइनर, सारंग कुलकर्णी, से पूछा कि उन्हे इस डिज़ाइन का विचार कैसे आया, तो उन्होने बताया कि विलोम का बीज उनके स्टूडियोें में होने वाले एक ड्रॉइंग अभ्यास के दौरान बोया गया था। शाम की चाय के साथ एकटाइप की टीम गपशप तो करती ही है, पर साथ ही साथ मिलकर ड्रॉइंग भी करती है। हर बार नयी प्रेरणा और उद्देश्य होते हैं और इस तरह टीम अपनी कल्पना को नयी उड़ान दे पाती है। इनमें से चुनिन्दा नतीजे वे इन्स्टाग्रैम पर पोस्ट करते हैं, और कुछ अंततः विलोम जैसे नए टाइपफ़ेसिस बन जाते हैं। आप चाहें तो एकटाइप के टाइपोग्राफ़िक प्रयोगों का लुत्फ़ लेटरबॉक्स इण्डिया पर उठा सकते हैं।
हमारी मुलाक़ात में सारंग ने मुझे यह याद दिलाया कि सभी टाइपफ़ेसिस का लक्ष्य समान नहीं होता। कुछ डिज़ाइनें, जैसे विलोम, हमें दिखाती हैं कि देवनागरी लिपि केवल गम्भीर ही नहीं बल्कि चंचल भी हो सकती है। उन्होने यह स्वीकारा कि सब ग्राफ़िक डिज़ाइनर सुलेखन या कैलिग्राफ़ी और लेटरिंग की कला नहीं जानते हैं परंतु इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि वे रोमांचक टाइपोग्राफ़ी का इस्तेमाल न कर पाएँ। विलोम देवनागरी के ज़रिए सारंग उन्हे एक नया और मनोहर साधन देना चाहते हैं।
ओमा देवनागरी (गुन्नर विल्ह्यमसन व हितेश मालवीय, यूनिवर्सल थर्स्ट)
जहाँ इस लेख में बयान किए पहले दो टाइपफ़ेसिस ज़ाहिर तौर से रोचक हैं, वहीं ओमा देवनागरी की दिलचस्पी को पहचानने के लिए आपको ज़रा गौर फ़रमाना होगा। दूर से यह अनेकों और ऐसे टाइपफ़ेसिस जैसा लग सकता है जिनमें रेखाओं का वज़न एक समान होता है, पर इसकी छोटी-छोटी खूबियाँ इसे उनसे अलग करार देती है।
ओमा की शुरुआत एक अंग्रेज़ी डिज़ाइन मैगज़ीन में इस्तेमाल में लिए हुई थी। लैटिन टाइपफ़ेस की रचना के समय डिज़ाइनर गुन्नर विल्ह्यमसन को महसूस हुआ कि वही सिद्धांत देवनागरी लिपि में भी खूब जंचेंगे। उन्होने अपने ख़्यालात सह-डिज़ाइनर हितेश मालवीय को बताए, और इस तरह ओमा देवनागरी का जन्म हुआ।
ओमा अपनी प्रेरणा टाइपराइटरों के अक्षरों से लेता है। तकनीकी कमियों के कारण टाइपराइटर के सभी अक्षरों की चौड़ाई एकसम होती है। इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि अक्षर की मूल आकृति को कितनी जगह की ज़रूरत है, सभी अक्षर एक ही चौड़ाई में सिकुड़ या फैल जाते है। डिज़ाइन की बोल-चाल में ऐसे फ़ॉण्ट्स को मोनोस्पेस्ड बुलाया जाता है। लेकिन ओमा मोनोस्पेस्ड नहीं है। गुन्नर के अनुसार यह मोनोस्पेस्ड फ़ॉण्ट्स के लय और ताल को एक नए रूप में ढालने की कोशिश है। मेरा मानना है कि इस टाइपफ़ेस की सफलता का श्रेय गुन्नर और हितेश के संयम को जाना चाहिए। डिज़ाइन में कई अक्षरों की बनावट परम्परागत रूप से हटके और अण्डाकार या चौकोर है, पर यह आकार जबरन नहीं मालूम देते। कुल-मिलाकर ओमा में विशिष्टता और कार्यक्षमता का बहुत ही अच्छा संतुलन है, और इसे बनाए रखना कोई आसान काम नहीं होता।
गुन्नर से बातचीत के दौरान एक ज़रूरी मुद्दा भी उभरा − शायद ओमा देवनागरी की बनावट कई लोगों को बिलकुल नई इसलिए लगी क्योंकि टाइपराइटर द्वारा कृत अक्षर, ख़ास कर देवनागरी अक्षर − जो इस डिज़ाइन की प्रेरणा हैं − कुछ ही दशकों में हमारी यादों में कहीं खो गए हैं। नई पीढ़ियों ने न टाइपराइटर देखे हैं न इस्तेमाल किए हैं। यह एक संकेत है कि हिन्दुस्तान में डिज़ाइन बिरादरी को अपने इतिहास से वाक़िफ़ रहने पर और ज़ोर डालना चाहिए।
अलविदा कहने से पहले मैं एक आखरी टाइपफ़ेस का ज़िक्र करना चाहती हूँ — किमया गाँधी का फ़िट देवनागरी, जो की डेविड जॉनथन रॉस के लैटिन-प्रथम, बहु-लिपीय फ़िट फ़ॉण्ट परिवार का हिस्सा है। देवनागरी लिपि के अनेक घुमावदार अक्षरों को चौकोर आकार में और कम-से-कम काउण्टर स्पेस के साथ तैयार करने की यह एक शानदार मिसाल है।
इस लेख के संदर्भ में मुझसे बात करने के लिए लिपि, सारंग और गुन्नर को मेरा बहुत-बहुत शुक्रिया। आशा करती हूँ इन नायाब टाइपफ़ेस के बारे में पढ़कर आप अपने अगले देवनागरी प्रौजेक्ट पर काम करते समय कुछ जोखिम उठाएँगे और देवनागरी टाइपोग्राफ़ी में नए कदम बढ़ाने की चेष्टा करेंगे।
कलोफ़ोन
हेडर टाइपफ़ेस: इकत देवनागरी, हेडर डिज़ाइन बाय: कस्तूरी